ONOE News : पहले संसद के बाहर और अब संसद के अंदर One Nation One Election को लेकर पक्ष और विपक्ष आमने-सामने है। जहां एक तरफ सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी इसके पक्ष में है, तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस सपा, आरजेडी, AAP और डीएमके जैसी क्षेत्रीय पार्टियां खुलकर इसका विरोध कर रही है। हलांकि NDA कुनबे में शामिल करीब-करीब सभी सहयोगी दल बीजेपी की हा में हा मिलते नजर आ रहे है। लेकिन अब सवाल है कि आखिर क्यों One Nation One Election को लेकर पक्ष और विपक्ष में जंग छिड़ी हुई है ?
ONOE News : क्या है One Nation One Election ?
One Nation One Election का मतलब है कि पूरे देश में एक साथ लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का चुनाव कराए जाए। यानी वोटर्स लोकसभा और विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन में अपना वोट डाले। इसके पीछे मोदी सरकार का तर्क है कि वन नेशन, वन इलेक्शन से सरकार का कामकाज आसान हो जाएगा। देश में बार-बार चुनाव होने से काम अटकता है, क्योंकि चुनाव की घोषणा होते ही आचार संहिता लग जाती है। जिससे परियोजनाओं में देरी होती है और विकास कार्य रुक जाता है। दावा तो ये भी किया जाता है कि एक बार चुनाव कराने से लागत कम होगी और संसाधन भी कम लगेंगे, जो पैसे बचेंगे वो देश के विकास में खर्च किया जाएगा। तर्क तो ये भी दिया जाता है कि एक साथ चुनाव से खासकर विधानसभा चुनावों में सरकार, उम्मीदवारों और पार्टियों का अलग-अलग खर्चा होता है वो सब कम हो जाएगा।
एक साथ चुनाव कराने से वोटर्स के रजिस्ट्रेशन और वोटर लिस्ट तैयार करने का काम आसान हो जाएगा, एक ही बार में ठीक से इस काम को अंजाम दिया जा सकेगा। कम चुनाव होने से राज्यों पर भी वित्तीय बोझ नहीं पड़ेगा।
ONOE News : विपक्ष क्यों कर रहा विरोध ?
One Nation One Election को लेकर विपक्ष का तर्क है कि भारत में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को लागू करने में कई चुनौतियां और खामियां हैं। खासकर कांग्रेस का तर्क है कि भारत जैसे विशाल देश में ये संभव नहीं है। क्योंकि हर राज्य की अलग चुनौतियां और उसके मुद्दे हैं, एक साथ चुनाव कराने से क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की संभावनाएं प्रभावित हो सकती हैं, क्योंकि क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के पास सीमित संसाधन हैं, जबकि सामने राष्ट्रीय दलों के संसाधन होने की वजह से वो हावी हो सकते हैं।
ONOE News : वन नेशन वन इलेक्शन के लागू होने से क्या होगा ?
अगर वन नेशन वन इलेक्शन लागू होता है तो केंद्र सरकार लोकसभा चुनाव 2029 के बाद एक तारीख तय करेगी, तारीख पर ही सभी राज्यों की विधानसभाएं भंग हो जाएंगी, इसके बाद पहले फेज में लोकसभा के टर्म के हिसाब से सभी विधानसभाओं के चुनाव कराए जाएंगे। इन सभी चुनावों के लिए एक ही वोटर लिस्ट होगी। आपको बता दे इससे पहले भारत की आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए जाते थे।
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