Ratan Tata: जिंदगी दूर जा रही थी और मौत बाहें फैला रही थी, फिर भी अस्पताल में अंतिम सांसें गिन रहा 86 साल का वो शख्स दुनियाभर को अपनी सलामती की खबर दे रहा था। किसी को क्या पता था कि ये संदेश उसकी जिंदगी का आखिरी संदेश बन जाएगा। यही जज्बा ही तो था जो रतन टाटा को औरों से जुदा बनाता था। जिंदादिली, दरियादिली और सादगी रतन टाटा की जिंदगी के तीन सबसे अहम पहलू थे। उद्योग जगत हो या आपदा का दौर, रतन टाटा हर क्षेत्र में सबसे आगे नजर आते थे। उनके नाम ऐसी कई उपलब्धियां दर्ज हैं जो अब तक कोई हासिल नहीं कर पाया। विगत सोमवार को रतन टाटा की तबीयत बिगड़ने की खबरें सुर्खियां बटोर रही थीं, लेकिन टाटा ने इन्हें सिरे से खारिज करते हुए खुद सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी कुशलता की जानकारी दी। उन्होंने एक्स पर लिखा था, ‘मेरे लिए चिंता करने के लिए सभी का धन्यवाद ! मैं बिल्कुल ठीक हूं। चिंता की कोई बात नहीं है और मैं उम्र संबंधी बीमारियों की जांच के लिए अस्पताल आया हूं। गलत सूचना फैलाने से बचें।’
रतन टाटा की उपलब्धियां
रतन टाटा सिर्फ एक उद्योगपति ही नहीं थे बल्कि एक सादगी पसंद नेकदिल इंसान, लोगों के लिए प्रेरणास्रोत भी थे। वे साल 1991 से 2012 तक टाटा ग्रुप के चेयरमैन रहे। इस दौरान उन्होंने कई कीर्तिमान स्थापित करते हुए टाटा समूह को सफलता के शिखर तक पहुंचाया।
पहली पूर्ण स्वदेशी कार टाटा ने दी थी भारत को
भारत में पहली बार पूर्ण रूप से निर्मित कार का उत्पादन शुरू करने का श्रेय रतन टाटा को ही जाता है। इस पहली पूर्ण स्वेदश निर्मित कार का नाम था टाटा इंडिका। दुनिया की सबसे सस्ती कार टाटा नैनो बनाने की उपलब्धि भी उन्हीं के नाम दर्ज है। उनके नेतृत्व में ही टाटा समूह ने लैंड रोवर और जंगुआर का अधिग्रहण कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खलबली मचा दी थी।
रतन टाटा ने स्कूली शिक्षा मुम्बई से ली थी। इसके बाद वे कॉर्नेल यूनिवर्सिटी चले गए, जहां से उन्होंने आर्किटेक्चर में बीएस किया। रतन टाटा 1961-62 में टाटा ग्रुप से जुड़े थे। इसके बाद उन्होंने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एडवांस मैनेजमेंट प्रोग्राम से प्रबंधन की पढ़ाई की। 1991 में वे टाटा ग्रुप के चेयरमैन बने। साल 2012 में रिटायर हुए थे।
रतन टाटा के गणित टीचर को लगता था कि वे स्कूल भी नहीं पास कर पाएंगे
रतन टाटा का बचपन एक साधारण बच्चे की तरह रहा है। तमाम सुख-सुविधाएं होने के बाद भी रतन टाटा मुम्बई में एक साधारण से घर में रहा करते थे। वह स्कूल में कई तरह की चीजों में भाग लिया करते थे। उन्होंने यह स्वीकार भी किया था कि वह काफी शर्मीले थे। रतन ने एक बार कहा था, ‘मुझे अपने गणित के टीचर याद हैं। उन्हें और मुझे लगता था कि मैं तो स्कूल भी पास नहीं कर पाऊंगा। हालांकि मैं स्कूल तो पास करने में कामयाब ही रहा था।’
विमान उड़ाने के लिए रेस्तरां में धोते थे जूठे बर्तन
रतन टाटा जब अमरीका की कॉरनेल यूनिवर्सिटी में आर्किटेक्चर की पढ़ाई कर रहे थे तो उसी दौरान उन्हें जहाज उड़ाने का शौक लगा । अमरीका में उन दिनों फीस भरकर विमान उड़ाने की सुविधा देने वाले सेंटर खुल चुके थे। उन्हें अपना शौक पूरा करने का मौका तो मिला पर उस वक्त उन्हें इतने पैसे नहीं मिलते थे कि वो विमान उड़ाने की फीस भर सकें। विमान उड़ाने की फीस जुटाने के लिए उन्होंने कई नौकरियां कीं। इसी दौरान उन्होंने कुछ समय के लिए रेस्तरां में जूठे बर्तन धोने की भी नौकरी की।
असिस्टेंट से की करियर की शुरुआत
एक समय अमरीकी तकनीकी कंपनी आईबीएम के साथ नौकरी की पेशकश के बावजूद रतन टाटा ने भारत लौटने का फैसला किया था और टाटा स्टील के साथ अपना करियर शुरू किया था। उनके परिवार के सदस्य कंपनी के मालिक थे, पर उन्होंने एक सामान्य कर्मी के तौर पर कंपनी में काम शुरू किया। उन्होंने टाटा स्टील के प्लांट में चूना पत्थर को भट्ठियों में डालने जैसा काम भी किया। रतन टाटा को उड़ने का बहुत शौक था। वह 2007 में एफ-16 फाल्कन उड़ाने वाले पहले भारतीय बने। उन्हें कारों का भी बहुत शौक था। उनके संग्रह में मासेराती क्वाट्रोपोटें, मर्सिडीज बेंज एस-क्लास, मर्सिडीज बेंज 500 एसएल और
जगुआर एफ-टाइप जैसी कारें शामिल हैं। 90 के दशक में जब टाटा समूह ने अपनी कार को लॉन्च किया तब कंपनी की सेल उम्मीदों के अनुरूप नहीं हो पाई। उस वक्त टाटा ग्रुप ने चुनौतियों से जूझ रही टाटा मोटर्स के पैसेंजर कार डिविजन को बेचने का फैसला करने का मन बना लिया। इसके लिए रतन टाटा ने अमरीकन कार निर्माता कंपनी फोर्ड मोटर्स के चेयरमैन बिल फोर्ड से बात की बातचीत के दौरान बिल फोर्ड ने उनका मजाक उड़ाते हुए कहा था कि आप कुछ नहीं जानते, आखिर आपने पैंसेजर कार डिविजन शुरू ही क्यों किया ? अगर मैं यह सौदा करता हूं तो यह आपके ऊपर एक बड़ा अहसान होगा। फोर्ड चेयरमैन के इन शब्दों से रतन टाटा बहुत आहत हुए पर उन्होंने इसे जाहिर नहीं किया। उसके बाद उन्होंने पैंसेजर कार डिविजन बेचने का अपना फैसला टाल दिया और अपने अंदाज में उनसे इसका बदला लिया। फोर्ड के साथ डील स्थगित करने के बाद रतन टाटा स्वदेश लौट आए। फोर्ड के मुखिया से हुई बातचीत के करीब नौ वर्षों के बाद टाटा मोटर्स की कारें पूरी दुनिया में अपनी पहचान बना चुकी थीं। वहीं दूसरी ओर, फोर्ड कंपनी की हालत बिगड़ती जा रही थी डूबती फोर्ड कंपनी को उबारने का जिम्मा टाटा ने लिया और साथ में उन्होंने नौ साल पहले हुए अपमान का बदला भी ले लिया।
