मेरा गीत चाँद है न चांदनी है आजकल।
ना किसी के प्यार की ये रागिनी है आजकल।।
मेरा गीत हास्य भी नहीं है माफ़ कीजिये।
साहित्य की भाषा भी नहीं है माफ़ कीजिये।।
मैं गरीब के रुदन के आंसुओ की आग हूँ।
भूख के मजार पर जलता हुआ चिराग हूँ।।
यह कविता औज के सुप्रसिद्ध कवि डॉ. हरिओम पंवार की लिखी उन बेहतरीन रचनाओं में से एक है जिन्हें मैं पसंद करता हूं। शुक्रवार का दिन था। सुबह लगभग 8 बजे का समय था। मैं ऑफिस जाने के लिए बस स्टॉप पर बस की प्रतिक्षा कर रहा था। तभी बस स्टॉप के पीछे के कोलाहल ने मेरा और मेरे साथियों का ध्यान अपनी तरफ खींचा।
दरअसल, हापुड़ जिले में स्थित बाबूगढ़ थाना पुलिस मय एसएसओ विजय कुमार गुप्ता के साथ चैकिंग अभियान चला रही थी। इस दौरान विदआउट हेलमेट पहने दोपहिया वाहन चालकों को रोककरकर उनसे पूछताछ चल रही थी। पास में एक 5 वर्षीय बच्ची अपने परिवार के 6 से 7 लोगों के साथ पास में बैठी हुई थी। लग रहा था कि पूरा परिवार किसी दूरस्थ गांव से आया हुआ है। परिवार में सभी महिलाएं थी।
बाबूगढ़ थाने के एसएचओ विजय कुमार गुप्ता की नजर उस बच्ची के परिवार पर पड़ी। बाबूगढ़ थाने के एसएचओ ने परिवार के इस कारण यहां आने के बारे में पूछा। इस दौरान उन्हें पता चला कि परिवार के बच्चे भूखे है। तभी एसएचओ ने पास में स्थित फल की दुकान से केले खरीदे और उस परिवार को खाने के लिए दिए।
मजबूर परिवार को कराया नाश्ता
एसएचओ की दरियादिली को देखकर मैं भी नजदीक गया और मैंने पास जाकर इस घटना की कई तस्वीरें अपने फोन में कैद कर ली। पुलिस का मानवीय चेहरा देखकर वहां खड़े लोगों ने भी बाबूगढ़ थाने के एसएचओ की तारीफ की। इस घटना ने उत्तर प्रदेश पुलिस के मानवीय चेहरे से साक्षात्कार करा दिए। उत्तर प्रदेश पुलिस के अधिकारी विजय कुमार गुप्ता जी को लोकहित क्रांति समाचार पत्र की तरफ से साधुवाद।
