Ban On Fantasy Apps: देश में तेजी से बढ़ रही अवैध ऑनलाइन सट्टेबाजी और गेमिंग ऐप्स पर रोक लगाने की मांग को लेकर एक जनहित याचिका (PIL) सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है। इस याचिका में इन ऐप्स को बंद करने और इनके संचालन पर सख्त कानून बनाने की अपील की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर विचार करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एनके सिंह की पीठ द्वारा की गई। हालांकि फिलहाल राज्य सरकारों को कोई नोटिस जारी नहीं किया गया है।
याचिकाकर्ता की दलील
Ban On Fantasy Apps: याचिका दाखिल करने वाले याचिकाकर्ता ने खुद को “एक प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता, मानवतावादी और ग्लोबल पीस इनिशिएटिव का अध्यक्ष” बताया है। उनका कहना है कि यह याचिका लाखों युवाओं और कमजोर वर्गों को ऑनलाइन सट्टेबाजी और जुए की लत से बचाने के उद्देश्य से दाखिल की गई है।
याचिका में मार्च 2025 में तेलंगाना में सामने आए उस मामले का उल्लेख किया गया है जिसमें 25 बॉलीवुड सेलिब्रिटी, क्रिकेटर और अन्य चर्चित हस्तियों के खिलाफ सट्टेबाजी ऐप्स को बढ़ावा देने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। साथ ही, तेलंगाना में 24 लोगों की आत्महत्या से जुड़ी खबर को भी याचिका का आधार बनाया गया है।
फैंटेसी गेमिंग भी जुए की श्रेणी में
Ban On Fantasy Apps: याचिकाकर्ता ने फैंटेसी स्पोर्ट्स और कौशल-आधारित गेमिंग के नाम पर संचालित हो रहे ऑनलाइन सट्टेबाजी ऐप्स को “भाग्य का खेल” बताया है, न कि कौशल का। उन्होंने कहा कि ऐसे ऐप्स सीधे तौर पर सार्वजनिक दुआ अधिनियम, 1867 का उल्लंघन करते हैं, जिसके तहत कई राज्यों में जुए पर प्रतिबंध है।
केंद्र से मांगा गया जवाब
Ban On Fantasy Apps: सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। अब यह देखना होगा कि केंद्र सरकार इस मामले में क्या रुख अपनाती है और क्या देश में ऑनलाइन सट्टेबाजी व फैंटेसी गेमिंग ऐप्स पर कोई सख्त कानून बनता है।
जनहित और सामाजिक सुरक्षा का मुद्दा
Ban On Fantasy Apps: यह मामला केवल कानून व्यवस्था का नहीं, बल्कि समाज के भविष्य – युवाओं की मानसिक और आर्थिक सुरक्षा से भी जुड़ा है। इस याचिका के ज़रिए एक बार फिर ऑनलाइन गेमिंग के नाम पर हो रहे शोषण और धोखाधड़ी पर राष्ट्रीय बहस छिड़ सकती है।
